"अजंता" की "सफारी" कर "ज्ञानगंगा अभयारण्य" में वापस लौटा "सी-1" बाघ

🔹 वन्यजीव विभाग हुआ सतर्क
🔸 कब खत्म होगी बाघिन की तलाश

 बुलढाणा - 29 दिसंबर

2 सप्ताह पहेले ज्ञानगंगा अभयारण्य से बाहर निकलकर अजंता पर्वतीय श्रृंखला से होते हुए अजंता की गुफाओं तक का सैर-सपाटा कर आखिर सी-1 बाघ वापस ज्ञानगंगा अभयारण्य में लौट आने की जानकारी वन्यजीव विभाग से मिली है.अपने सुरक्षित अधिवास व बाघिन की तलाश में ये 3 वर्षीय नर बाघ अब तक 1700 किलोमीटर से अधिक का प्रवास कर चुका है.इस अभयारण्य में बाघ के वापस लौट आने से अकोला वन्यजीव विभाग के अधिकारियों में उत्साह का वातावरण देखा जा रहा है.
         यवतमाल जिले के "टीपेश्वर अभयारण्य" में करीब 3 साल पहेले  "टी-1" नामक एक बाघिन ने 3 शावकों को जन्म दिया था. इन शावकों को क्रमशः सी-1, सी-2 और सी-3 ये नाम दिए गए थे.ढाई साल की उम्र में यह बाघ अपनी माँ को छोडकर पडोसी राज्य तेलंगाना के आदिलाबाद के जंगल में चला गया था जो फिर महाराष्ट्र में लौट आया और नांदेड़, हिंगोली, परभणी और वाशिम से होते हुए 5 माह में 13 सौ किलोमीटर की लंबी यात्रा करते हुए 1 दिसेंबर की रात में बुलढाणा जिलों के "ज्ञानगंगा अभयारण्य" में प्रवेश किया.सी-1 इस बाघ को रेडियो कॉलर लगा होने से उसका पीछा वाइल्डलाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया की टीम निरंतर कर रही है.15 दिन "ज्ञानगंगा अभयारण्य" में इस बाघ ने गुज़ारे जिस से  ये अनुमान लागाया जा रहा था कि अब इसी अभयारण्य को याद बाघ अपना आधिवास क्षेत्र बना लेगा किंतु ये बाघ अभयारण्य बाहर निकल गया और बोरखेड होते हुए बुलढाणा के करीब से गुज़रकर राजुर घाट में जा पहुंचा और बुलढाणा-मलकापुर मार्ग को क्रॉस कर अजंता पर्वत श्रृंखला से होते देवलघाट,पाडली,गिरडा,सवलतबारा जंगल से निकलकर जालना जिले के धावडा और फिर औरंगाबाद जिले की सीमा में प्रवेश करते हुए अजंता की गुफाओं के पास फरदापुर और फिर आगे सोयगांव परिक्षेत्र तक चला गया.इधर-उधर भटकने के बाद इस बाघ ने अपने कदम वापस खींचते हुए जिस रास्ते से गुज़रा था उस से सटकर ही ये बाघ अजंता की पहाड़ियों की सफारी कर 27 दिसेंबर को वापस ज्ञानगंगा अभयारण्य में लौट आया है.बाघ ने अब तक 1700 किलोमीटर से अधिक का सफर तय करते हुए एक रिकॉर्ड बनाया है.खास बात तो ये है कि इतनी लंबी यात्रा करने के बाद भी कहीं पर बाघ ने किसी मनुष्य पर हमला नही किया है. इस बाघ पर अकोला वन्यजीव विभाग के अधिकारी पूरी तरह से नज़र बनाए हुए हैं.

*कब तक यूँ ही भटकेगा सी-1 बाघ*
जानकारों की माने तो सी-1 बाघ अब पूरी तरह से जवान हो गया है जो संरक्षित अधिवास की बजाय खास तौर पर बाघिन की तलाश में घूम रहा है.अब तक 17 सौ किलोमीटर से अधिक यात्रा इस बाघ की हो गई फिर भी बाघिन नही मिल पाई है. बाघ का वापस ज्ञानगंगा अभयारण्य में वापस लौट आना इस बात के संकेत दे रहे है कि अब वे यहाँ स्थायिक हो सकता है और यदि बाघ इस अभयारण्य में रुक गया तो उसे एक बाघिन की आवश्यकता रहेगी,ऐसे में वन्यजीव विभाग इस दिशा में विचार करते हुए मेलघाट,ताडोबा या फिर अन्य किसी व्यघ्र प्रकल्प से एक बाघिन की व्यवस्था करना चाहिए.

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