बुलढाणा - प्रतिनिधी कासिम शेख :-23 सितंबर
महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के आदिवासी ग्राम मालेगांव निवासी एक आदिवासी परिवार ने कुएं में कूदकर अपनी जीवन यात्रा को खत्म कर दिया.ये घटना 22 सितंबर को "बेटी दिवस" के दिन हुई है जहां एक माँ ने अपने साथ अपनी 4 बेटियों को मौत की आगोश में ढकेल दिया.घटना वाकई में समाज को सन्न करने वाली है साथ ही सरकार को शर्मिंदा भी कर रही है, एक तरफ सरकार "बेटी बचाओ" का नारा लगा रही है किंतु सरकार के इस नारे की पोलखोल इस घटना ने कर के रख दी है.
बुलढाणा जिले की मेहकर तहसील अंतर्गत का ग्राम मालेगांव दुर्गम भाग है जो अजंता पर्वत श्रंखला के जंगल मे बसा हुआ है.गांव में 80 प्रतिशत आदिवासी "आंध" प्रजाति के समुदाय का अधिवास है.खेती,खेतमजदूरी,मजदूरी और मवेशी चराना यही उनका रोजगार है.भूमिहीन 38 वर्षीय बबन ढोके के परिवार में पत्नी और 4 बेटियां थी जो अपने परिवार की परवरिश के लिए मजदूरी करता था.एक से डेढ़ माह पहले बबन ने विषैली दवाई पी ली जिस से उसकी मौत हो गई थी.ऐसे में 4 बेटियों के पालन-पोषण सहित भविष्य में उनकी शादी-ब्याह का कर्तव्य भी माँ उज्वला को ही निभाना था किंतु इतनी बडी जवाबदारी को कैसे पूरा करें? यह प्रश्न स्वभाविक रूप से उज्वला के सामने खडा होगा.पती बबन की मौत के बाद उज्वला ने घर का बोझ उठाते हुए खेत में मजदूरी से काम करना शुरू कर दिया था ताकि अपनी बेटियां भूकी ना रहे सके.कल 22 रविवार को उज्वला अपनी चारों बेटियों को साथ मे लेकर खेत मे काम के लिए गई जहां शाम 4 बजे काम निपटाने के बाद वापस घर जा रही ऐसा कहते हुए अपनी बेटियों के साथ घर की तरफ निकल पडी लेकिन रात होने पर भी घर नही लौटने पर परिजन व ग्रामीणों ने उसे तलाशा पर कोई पता नही चल पाया ऐसे में आज सुबह गांव से 1 किलोमीटर की दूरी पर तुलशिराम तोंडकर के खेत स्थित कुएं में माँ उज्वला ढोके (35) और उनकी चार बेटियां वैष्णवी ढोके (9 वर्ष), दुर्गा ढोके (7 वर्ष), आरुषी ढोके (4 वर्ष) तथा पल्लवी ढोके इन पांचों के शव तैरते हुए नज़र आने के बाद पूरे इलाके में सनसनी फैल गई थी.
दरअसल ये घटना सनसनी फैलानेवाली ही है जो इस सरकार पर प्रश्नचिन्ह खडे कर रही है.एक माँ अपनी 4 बेटियों के साथ अपनी जान दे तो फिर सरकार की बंदर भपकियाँ केवल विज्ञापनों तक ही सीमित है क्या?राज्य में विधानसभा का चुनावी माहौल बना हुआ है और नेता चाहे सत्ता दल के हो या विपक्ष के सब अपनी पुंगी बजाने में व्यस्त है.सरकार को चाहिए कि,ऐसे ज़रूरतमंदों तक पहोंचे जो सरकारी योजनाबके हकदार है,,तब जा कर कोई उज्वला को "बेटी दिवस" पर अपनी बेटियों के साथ आत्महत्या करने की ज़रूरत नही पडेगी.
महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के आदिवासी ग्राम मालेगांव निवासी एक आदिवासी परिवार ने कुएं में कूदकर अपनी जीवन यात्रा को खत्म कर दिया.ये घटना 22 सितंबर को "बेटी दिवस" के दिन हुई है जहां एक माँ ने अपने साथ अपनी 4 बेटियों को मौत की आगोश में ढकेल दिया.घटना वाकई में समाज को सन्न करने वाली है साथ ही सरकार को शर्मिंदा भी कर रही है, एक तरफ सरकार "बेटी बचाओ" का नारा लगा रही है किंतु सरकार के इस नारे की पोलखोल इस घटना ने कर के रख दी है.
बुलढाणा जिले की मेहकर तहसील अंतर्गत का ग्राम मालेगांव दुर्गम भाग है जो अजंता पर्वत श्रंखला के जंगल मे बसा हुआ है.गांव में 80 प्रतिशत आदिवासी "आंध" प्रजाति के समुदाय का अधिवास है.खेती,खेतमजदूरी,मजदूरी और मवेशी चराना यही उनका रोजगार है.भूमिहीन 38 वर्षीय बबन ढोके के परिवार में पत्नी और 4 बेटियां थी जो अपने परिवार की परवरिश के लिए मजदूरी करता था.एक से डेढ़ माह पहले बबन ने विषैली दवाई पी ली जिस से उसकी मौत हो गई थी.ऐसे में 4 बेटियों के पालन-पोषण सहित भविष्य में उनकी शादी-ब्याह का कर्तव्य भी माँ उज्वला को ही निभाना था किंतु इतनी बडी जवाबदारी को कैसे पूरा करें? यह प्रश्न स्वभाविक रूप से उज्वला के सामने खडा होगा.पती बबन की मौत के बाद उज्वला ने घर का बोझ उठाते हुए खेत में मजदूरी से काम करना शुरू कर दिया था ताकि अपनी बेटियां भूकी ना रहे सके.कल 22 रविवार को उज्वला अपनी चारों बेटियों को साथ मे लेकर खेत मे काम के लिए गई जहां शाम 4 बजे काम निपटाने के बाद वापस घर जा रही ऐसा कहते हुए अपनी बेटियों के साथ घर की तरफ निकल पडी लेकिन रात होने पर भी घर नही लौटने पर परिजन व ग्रामीणों ने उसे तलाशा पर कोई पता नही चल पाया ऐसे में आज सुबह गांव से 1 किलोमीटर की दूरी पर तुलशिराम तोंडकर के खेत स्थित कुएं में माँ उज्वला ढोके (35) और उनकी चार बेटियां वैष्णवी ढोके (9 वर्ष), दुर्गा ढोके (7 वर्ष), आरुषी ढोके (4 वर्ष) तथा पल्लवी ढोके इन पांचों के शव तैरते हुए नज़र आने के बाद पूरे इलाके में सनसनी फैल गई थी.
दरअसल ये घटना सनसनी फैलानेवाली ही है जो इस सरकार पर प्रश्नचिन्ह खडे कर रही है.एक माँ अपनी 4 बेटियों के साथ अपनी जान दे तो फिर सरकार की बंदर भपकियाँ केवल विज्ञापनों तक ही सीमित है क्या?राज्य में विधानसभा का चुनावी माहौल बना हुआ है और नेता चाहे सत्ता दल के हो या विपक्ष के सब अपनी पुंगी बजाने में व्यस्त है.सरकार को चाहिए कि,ऐसे ज़रूरतमंदों तक पहोंचे जो सरकारी योजनाबके हकदार है,,तब जा कर कोई उज्वला को "बेटी दिवस" पर अपनी बेटियों के साथ आत्महत्या करने की ज़रूरत नही पडेगी.
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